*चिता की चिंता* या *चिंता की चिता*
ई.विवेक तिवारी इंदौर
आत्मबल, आत्म निर्भरता, आत्म अवलोकन यह शब्द न होकर आत्मा के पर्याय है। हर सत्र और सुबह का एकांत एक ही मनस्थिति को अग्रसर करता है सहजता, सरलता, नौसर्गिकता, ज्ञान और कार्य के बोझ से दूर, निसर्ग के करीब रहने की आवश्यकता। चिंता एक virus के समान है जो एक से दूसरे मे फैलती है, यहाँ दो कमजोर मनः स्थिति के व्यक्ति मिल जाए तो विध्वंस कर देती है, वही आपको संबल प्रदान करने वाले का आत्मविश्वास आपको आशा की किरण है।
वर्तमान मे इंजीनियरिंग मे कॅरिअर बनाने को लेकर विधार्थी पर कक्षा नवी से दबाव बन जाता है फिर यह दवाब जीवन भर बढ़ता रहता है। भारत की शिक्षा प्रणाली पर पश्चिम का प्रभाव यू पड़ा है जहा व्यवाहरिक ज्ञान और कार्य कौशलता दब सी गयी, विधार्थी के गुरु आनंद और आत्मचिंतन का खैवैया की तरह कार्य करते थे, उम्र के अनुरूप ज्ञान दिया जाता था पर आज डिग्री प्राप्त कर, नौकरी और फिर उलझन की जिंदगी का फलसफा बन गया है। चिंतन करता हु तो लगता है हर विधार्थी के पालक उनका भला चाहते और करते है उन्हे प्रेरित करते है अच्छे जीवन शैली से परी पूरित जीवन जीने का। घुटनों के बल चलना शुरू हुआ जीवन किस तरह आंधाधुंद भागता है। मानव स्वयं से ही भागता रहता है, उलझन मे खोया व्यक्ति अन्य को भी संक्रमित करता है। जीवन के हर पड़ाव पर कुछ देर रूक कर विचार करे, मन को तैयार करे मन का न हुआ तो जो होगा उसमे अपनी भूमिका का निर्वाहन करेगे।
मनुष्य की एकाग्रता और सही ऊर्जा का प्रयोग मनुष्य को पूजित करवा देती है चिंतन के लिए अच्छे लोगो की संगति, अच्छा साहित्य, नैसर्गिक वातावरण है। वर्तमान को जीने मे यही हमारे साथ है। आत्मा विश्वास से जब भी किसी समस्या मे हो तो झुंझलाहट को धूल की तरह झाड़े, क्युकी यह संकेत किसी आने वाले दवाब का, इसलिए हर परिस्थिति मे सिर्फ अपनी विजय का सोचे बाकी प्रभु अभिलाषा।
आनंद के प्रसारक बनने की प्रेणना देने वाले आप सभी वरिष्ठ और अग्रजो को धन्यवाद ।
🙏🏻💐🙏🏻
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9 thoughts on “*चिता की चिंता* या *चिंता की चिता* ई.विवेक तिवारी”
आपने यथार्थ स्थिति स्पष्ट की है। यह भी सत्य है की मानसिक दबाव की शुरुआत अभिभावकों dwara भी की जाती है , शुरू से ही बच्चों की सिर्फ़ अंकसूची पर ध्यान दिया जाता है/ धीरे धीरे कुंठा जन्म लेती है और सर्वांगीण विकास के रास्ते में awarodh हो जाता है ऐसी परिस्थितियों में पले बढ़े बच्चे सिर्फ़ भोतिकवादी होते हैं। आज की शिक्षण व्यवस्था विचारणीय है।
Sir great to good article
भैया बहुत ही अच्छी एवं बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही है आपने और आपके पहले आउट इतने अच्छे ब्लॉग के लिए बहुत बहुत बधाईयाँ।
बहुत बढ़िया, विवेक जी।
विवेक सर बहुत सरल शब्दों में बहुत महत्वपूर्ण बात कही है हम सब अपनी जिंदगी की भाग दौड़ में अपने मन के भावों को भी नहीं समझ पाते, ना जाने क्या पाने के दोड़ में अपने जीवन के अनमोल समय जो हम कुछ भी करके वापस नहीं ला सकते हैं विचारणीय विषय है
विवेक सर को बहुत बहुत बधाईयाँ
अति उत्तम सर, आज कल की जो समस्या है बच्चों पर दबाव , एकाग्र चित व मन की शांति के लिए बहुत सुंदर , अति सुंदर ब्लॉग लिखा है सर
यथार्थ को रेखांकित करता हुआ आपका है लेख चिंतन योग्य है, विचारणीय है, प्रशंसनीय है और आप आत्म अवलोकन के लिए एक मील का पत्थर साबित होते हो सकता है। बहुत-बहुत साधुवाद
Great
विवेक भाई बहुत सारगर्भित लेख है।आशा है आगे भी इसी तरह से लेखन तथा आंतरिक भावना लेख के माध्यम से व्यक्त होती रहेगी।
बधाई हो आपको
आपने यथार्थ स्थिति स्पष्ट की है। यह भी सत्य है की मानसिक दबाव की शुरुआत अभिभावकों dwara भी की जाती है , शुरू से ही बच्चों की सिर्फ़ अंकसूची पर ध्यान दिया जाता है/ धीरे धीरे कुंठा जन्म लेती है और सर्वांगीण विकास के रास्ते में awarodh हो जाता है ऐसी परिस्थितियों में पले बढ़े बच्चे सिर्फ़ भोतिकवादी होते हैं। आज की शिक्षण व्यवस्था विचारणीय है।
Sir great to good article
भैया बहुत ही अच्छी एवं बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही है आपने और आपके पहले आउट इतने अच्छे ब्लॉग के लिए बहुत बहुत बधाईयाँ।
बहुत बढ़िया, विवेक जी।
विवेक सर बहुत सरल शब्दों में बहुत महत्वपूर्ण बात कही है हम सब अपनी जिंदगी की भाग दौड़ में अपने मन के भावों को भी नहीं समझ पाते, ना जाने क्या पाने के दोड़ में अपने जीवन के अनमोल समय जो हम कुछ भी करके वापस नहीं ला सकते हैं विचारणीय विषय है
विवेक सर को बहुत बहुत बधाईयाँ
अति उत्तम सर, आज कल की जो समस्या है बच्चों पर दबाव , एकाग्र चित व मन की शांति के लिए बहुत सुंदर , अति सुंदर ब्लॉग लिखा है सर
यथार्थ को रेखांकित करता हुआ आपका है लेख चिंतन योग्य है, विचारणीय है, प्रशंसनीय है और आप आत्म अवलोकन के लिए एक मील का पत्थर साबित होते हो सकता है। बहुत-बहुत साधुवाद
Great
विवेक भाई बहुत सारगर्भित लेख है।आशा है आगे भी इसी तरह से लेखन तथा आंतरिक भावना लेख के माध्यम से व्यक्त होती रहेगी।
बधाई हो आपको