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  होली का यह उत्सव स्मरण दिलाता है कि,होली के रंगों के साथ परमात्मा के रंग में रंग जाने की सार्थकता भी तभी है,जब मन के विकारों का भी अग्नि दहन कर दिया जाए।वसंत ऋतु के इस खंड में रंगों का मादक असर रोम रोम आनंदित कर,प्रभु की शरण का
रिश्तों में ऊर्जा लाने,पुनर्जीवित करने हेतु एक बार जरूर अपने उन सारे रिश्तों के बारे में सोचें,जो आप जारी रखना चाहते हैं,परंतु गलतफहमी,संवाद हीनता,अहम अथवा अनावश्यक टीका टिप्पणी के कारण बाधित हो गए है।संवाद की गुणवत्ता,शैली तथा कौशल भी रिश्तों को पल्लवित करने में उपयोगी होता है। विदेशों में किए
शिव अस्तित्व के रचियता भी हैं,और अस्तित्व भी हैं।वो ऊर्जा भी हैं और पदार्थ भी हैं।सृष्टि के कण कण में शिव स्वयं विद्यमान हैं।मानव जीवन का अस्तित्व, रचियता का उपहार है,जो परम चेतना के अवर्चनीय आनन्द को अनुभव करने के लिए दिया गया है,परंतु मानव मन के अहम ने स्वयं
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इस धरा पर मानवीय रूप में जन्म लेने के उपरांत, समय के साथ बाह्य परिस्थिति से प्रभावित होकर निर्मल अवचेतना प्रदूषित होने लगती है। जन्म के समय अबोध बालक जैसे जैसे आयु के अगले पायदानों का सफर करने लगते हैं,दुनियादारी से उत्पन्न मोह,लोभ,वासनाएं व्यक्ति को अनंत बेलगाम ख्वाहिशों के मार्ग

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