कोई गंतव्य नहीं, आनंदित रहना ही गंतव्य है।
गुरमीत सिंह
पता नहीं किधर दौड़ रहे हैं, हम में से अधिकांश लोग ? कुछ कहते हैं,हमने लक्ष्य बनाए हैं,उनको प्राप्त करने में लगे हैं।बाकी लोग मृग मरीचिका की खोज में भटक रहें हैं। कहते हैं कि,सुख की तलाश जारी है। जैसा जो बताता है,उधर ही दौड़ पड़ते हैं। मंजिल तथा उसको प्राप्त करने का रास्ता बताने वाले की भी कोई कमी नहीं है।स्वयंभू विद्वान पूरे यकीन के साथ पथ प्रदर्शन में लगे है, व गाइड करने का शुल्क भी वसूल रहे हैं।यह अलग बात है कि,वे खुद,सुझाए गए रास्तों पर नहीं चलते हैं।अज्ञात मंजिल पाने के लिए, बेहोशी की हालत में ऐसे लगे हैं जैसे ,मंजिल मिलते ही सारे संसार की खुशियां उनकी झोली में होंगी,परन्तु ऐसा होता दिखता नहीं है।ये धावक बताते ही नहीं है कि उनको उनका चाहा गया डेस्टिनेशन मिल गया है ? छोटे स्टेशन रास्ते में शायद मिलते हैं,परन्तु उनका लुत्फ उठाने के लिए भी समय नहीं है।एक दिन दौड़ते दौड़ते अचानक परिदृश्य से गायब हो जाते हैं,उनके साथी धावक भी यह कह के कि,भला आदमी था अपनी दौड़ में लग जाते हैं।
अगर इच्छा पूरी करने में रेस लगाते रहे तो इस यात्रा का कोई अंत नहीं है। आवश्यकता और इच्छा में भेद नहीं करेंगे तो यह यात्रा अनवरत जारी रहेगी,बिना ये जाने कि,ईश्वर ने यह शरीर अंतहीन अज्ञात यात्रा के लिए नहीं दिया है।अपने तथा आश्रितों की जरूरतों को पूरा करना प्रत्येक व्यक्ति का धर्म है। जरूरतों का बुद्धिमततापूर्ण आकलन करना भी आवश्यक है।बस इसी आकलन में चूक हो रही है।कौन जिम्मेदार है,इस आकलन की त्रुटि का ?अकेला वह व्यक्ति या और भी लोग हैं। निश्चित रूप से और भी कारक है,जो भ्रम पैदा करके,सही गणनाओं में बाधा बनते हैं।कौन है यह कारक “हमारे बीच से ही हैं, जो या तो अज्ञानवश यां निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए यां खुद को स्वयंभू विद्वान” घोषित कर चारो और भ्रम का आवरण फैला कर रखे हैं। बाजार की ताकतों ने भी आनंद ,खुशी,सबेचने कीदुकानें खोल रखी हैं,इन्हीं कारणों से व्यक्ति की इच्छाएं सुरसा के मुख की तरह लगातार बढ़ती जा रही हैं,और फिर शुरू हो जाता है, यात्रा तथा मंजिल पाने का अंतहीन सिलसिला।
वास्तव में दिव्य शक्तिने ये जीवन दौड़ने के लिए तो कदापि नहीं दिया है।
आवश्यकता इस बात की है कि हैं अपनी न्यूनतम ज़रूरतो को पहचानें,सामाजिक और पारिवारिक दायित्वों को चिन्हित करे,फिर आकलन करे कि,हमें यात्रा किस प्रकार शांति पूर्वक ,प्यार तथा आनंद के साथ तय करनी है।ध्यान रखें कि यात्रा के छोटे स्टेशनों पर रुकें,उनको एन्जॉय करें, व धीरे धीरे आगे बढ़े।आवश्यकता से अधिक यदि संग्रह है तो वंचितों की सेवा करें।लेकिन इस प्रक्रिया का यह मतलब कदापि नहीं है कि,पुरुषार्थ छोड़ देना है। कर्म करना तो अत्यंत आवश्यक है,परन्तु आंखो पर पट्टी बांध कर दौड़ना अर्थहीन है।
तो अब करना क्या है? किशोर कुमार का गीत स्मरण करें “जिंदगी का सफर,है येऐसासफर कोई समझा नहीं,कोई जाना नहीं”। आइए इस गीत को आत्मसात करते है,इस सफर को समझने के स्थान पर,इसको जीना शुरू करे।प्रत्येक पल को जीयें और उसका आनंद उठाएं।इसका यह मतलब भी नहीं है कि कल की चिंता न करें।चिंता नहीं चिंतन करें,भविष्य की आवश्यकता का युक्ति युक्त आकलन करे,पूर्ति के उपाय सोचें,उस पर आज कार्य करें,पूरे उत्साह,ऊर्जा व प्यार के साथ।उत्सव मनाएं नियमित रूप से,कल पर नहीं छोड़े,आज को पूरी ऊर्जा व खुशी के साथ कल की व्यवस्थाकरते हुए पूरे जोश / होश के साथ बीइंग माइंडफुल रहते हुए,कल का प्लान करे,फिर अंधी दौड़ से अपने आप मुक्त हो जाएंगे।शांत,सजग,दया करुणा तथा प्यार के साथ दिव्य शक्ति को प्रतिदिन धन्यवाद ज्ञापित करते हुए धीरे धीरे जीवन को जीते हुए आगे बढ़ें। कोई रेस नहीं, कोई नकारात्ममक भाव नहीं ।
ध्यान रखें जीवन कोई रेस नहीं,न ही कोई मंजिल होती है। जो भी है वर्तमान है व यही गंतव्य भी है। रोज आनंदित होना ,ईश्वर के प्रति कृतज्ञ रहना,वंचितों की यथा शक्ति सेवा कराना,अपने परिवार व समाज के दायित्वों की दिन प्रति दिन पूर्ति करना ही मंजिल है।रोज एक नई मंजिल है,रोज खुशी से निर्वाहन करना गंतव्य तक पंहुचना ही ध्येय होना चाहिए।
गुरमीत सिंह
सर ब्लॉग वेबसाइट विकास व कार्यान्वन के लिए बहुत बहुत बधाई
Thanks Rathi jee for your Compliments