
प्रभु कृपा को कैसे आकर्षित करें
“बाबूजी” महात्मा श्री रामचन्द्र जी कहते है।
उनके बारे में ख्याल करो और वे वहाँ हैं। कुछ नहीं करना है न टेली फोन करना है न कंप्यूटर का बटन दबाना है ना कुछ और करने की जरूरत है। विचार मानस क्षेत्र से आते हैं इसलिए अध्यात्म में मानस क्षेत्र (ब्रह्मांड क्षेत्र) को इतना महत्व दिया जाता है। लेकिन हम वहां तब तक नहीं पहुंच सकते जब तक हमारी सारी प्रवृत्तियां साफ नहीं हो जाती।
गलत सोचना भी एक प्रवृत्ति है कुछ लोग सदैव गलत चीजों पर,नकारात्मक चीजों पर,जीवन के काले पक्ष पर मनन करते रहते हैं। निरंतर चिंतन करने वाले ऐसे लोगों को ब्लड प्रेशर वायु विकार और हृदय के आघात से और कोई अज्ञात डर के साथ जूझना पड़ता है। यहां मनस की कोई गलती नहीं है। यह गलत सोचना भी हमारी प्रवृत्ति का परिणाम है जिसे हम अपने अंदर विकसित कर लेते हैं।
अध्यात्म में प्रभु कृपा सभी चीजों से ऊपर है, यदि आप उसे आकर्षित कर सकें। वस्तुतः जो कुछ भी हम कर रहे हैं यह वह केवल उसकी कृपा को अपनी और आकर्षित करने के लिए है। अकेली साधना से हम कुछ भी नहीं पा सकते हैं। ध्यान हमारे मस्तिष्क को साफ कर उसे नियमित कर, उसे देवी ज्ञान को प्राप्त करने का एक हथियार बनाता है। ईश्वर को खोजने में यह हमारी कोई मदद नहीं करता।
प्रेम स्मरण से पैदा होता है। प्रेमी आपके प्रेम का उत्तर दे यह- आवश्यक नहीं है। यह उसी तरह है जैसे बच्चे के रोने पर हम दौड़कर उसे उठा लेते हैं। वह रो कर हमारा ध्यान आकर्षित करता है। इसलिए प्रभु ने कहा छोटे बच्चे जैसे बन जाओ। आपकी मासूमियत उन्हें आपके पास ले आएगी। इस मासूमियत में निर्भरता भी छुपी हुई होती है जिससे बच्चा अनभिज्ञ है। बड़े हो जाने पर हम कहते हैं कि हम क्यों किसी पर निर्भर हों? हम जर्मन हैं,फ्रांसीसी हैं,इंसान हैं हम आत्मनिर्भर होने की कोशिश करते हैं और खत्म हो जाते हैं। समर्पण कठिन होता है उस मासूमियत की अवस्था में बच्चा न समर्पण जानता है और न ही जानता है कि वह किसी पर आश्रित है। उसकी यह अवस्था ही हमें आकर्षित करती है, हमें ऐसा ही बनना है।
वाकई अध्यात्म और सकारात्मक विचारों से जो शाँति मिलती है उसी में प्रभु का ध्यान करोगे तो परम शांति का अनुभव हो सकेगा।
वैसे तो प्रभु का प्रत्यक्ष दर्शन या पा जाना बहुत कठिन, या यूं कहें ना मुमकिन है किंतु सकारात्मक रहे ओर अध्यात्म के अनुसार चिंतन मनन करते रहे,ना जाने कब किस रूप में प्रभु मिल जाये।
ओर एक बात जोड़ना चाहूंगा के जिस कार्य को करने में सन्तुष्टि मिले समझो प्रभु आपको मार्गदर्शन दे रहे है, वही उनका सानिध्य है.।
Kamlesh Mundra (Harada)
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साभार
( संकलन…सहज मार्ग क्या है,पुस्तक के अंश )