बुद्धि के साथ भावनात्मक लब्धि….जीवन आनंद

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गुरमीत सिंह 

 

 

राष्ट्र तथा समाज में हमारी तीव्र बुद्धि की उपादेयता तभी है,जब हम अपने ई क्यू को स्ट्रॉन्ग कर, अपने अजीजों तथा समाज की वंचित मानवता में भी खुशियों के सहभागी बन इनका उत्थान कर सकें।

जीवन की प्रतिस्पर्धा में बने रहने तथा सौंपे गए उत्तरदायित्वों के निर्वाहन हेतु,भावनात्मक कुशलता अथवा लब्धि की भी उतनी ही प्रासंगिकता है,जितनी बुद्धि तथा कौशल की है।


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गुरमीत सिंह


बुद्धि के साथ भावनात्मक लब्धि….जीवन आनंद

बुद्धिमता लब्धि को ही बुद्धिमान होने का पैमाना, तथा जीवन जीने के लिए सर्वाधिक उपयोगी माना जाता है। पालक अपनी संतानों का आई क्यू बढ़ाने के लिए, अनेकों विधियों तथा उपायों को अपनाने में व्यस्त हैं।बाजार की ताकतों ने भी,अपने बुद्धि बढ़ाने के उत्पाद बेचने के लिए भरपूर मार्केटिंग की है,परंतु सम्यक रूप से,जब जीवन जीने की शैली तथा उत्साह के पैमाने पर देखा गया, तो स्पष्ट हुआ कि,कक्षा में अधिकतम अंक अर्जित करने वाले होनहार छात्र,जीवन के इम्तिहान में असफल हो रहे हैं।कई प्रतिस्पर्धाओं में ऊंची रैंक हासिल कर, जिम्मेदार पदों पर आसीन व्यक्तियों का, परिणाम निराश कर देने वाला रहा।व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक जीवन में भी, वे अपने सर्वश्रेष्ठ होने के अहम को पाल कर,बाहरी दुनिया से दूर,अवसाद तथा निराशाभरी जीवन शैली तथा उत्साहहीन स्थिति में पाए गए।

अभी भी एक होड़ मची है,अधिकतम अंक लाने की ताकि,प्रतिस्पर्धाओं में उच्च स्थान प्राप्त कर सकें।कोचिंग इंस्टीट्यूट, कैरियर काउंसलर,बाजार के अन्य उत्पाद, बुद्धि को तीक्ष्ण करने की अनेकों विधियां सिखा रहें हैं,परंतु जीवन जीने, चुनौतियों का सामना कर आनंद तथा प्रेम से जीना शायद ही कोई सिखाता हो।ऐसे विधार्थी उच्च पदों पर सुशोभित होने में सफल होने के बाद भी,जीवन के वास्तविक लक्ष्य तथा उद्देश्य को शायद ही प्राप्त कर पाते हों।अपने आस पास दृष्टि डालिए,तो पाएंगे,कक्षा के बैक बेंचर जीवन में सभी आयामों में अधिक सफल प्रतीत होते हैं।दिन रात पढ़ाई जरूर कराई जा रही है,परंतु जीवन के संघर्ष का सामना तथा उसके मूल्य कोई नहीं सिखा रहा।

जीवन की प्रतिस्पर्धा में बने रहने तथा सौंपे गए उत्तरदायित्वों के निर्वाहन हेतु,भावनात्मक कुशलता अथवा लब्धि की भी उतनी ही प्रासंगिकता है,जितनी बुद्धि तथा कौशल की है।इसीलिए अब आई क्यू के साथ ई क्यू की भी बात होने लगी है,तथा उच्च जिम्मेदारी के पदों अथवा व्यवसाय में दोनो ही आई क्यू को समान महत्व मिलने लगा है।वैश्विक स्तर पर अक्टूबर माह को संवेगात्मक लब्धि,अर्थात इमोशनल कोशेंट को प्रोत्साहन देने के लिए मनाया जा रहा है।भावनात्मक तौर पर मजबूत व्यक्ति न केवल चुनौतियों का सामना शांति तथा उत्साह से करते हैं,अपितु उनके संपर्क में आने वाले समस्त व्यक्तियों की भावनाओं को समझने की भी दक्षता रखते हैं।

यह जीवन आत्मिक आनंद तथा प्रेम को अनुभव करके,उसे जगत में प्रसारित करने के लिए ही मिला है।बुद्धि दक्षता के साथ अगर भावनात्मक दक्षता का साथ न हो तो, जिंदगी को जीने के स्थान पर, पोषित अहम के साथ जैसे तैसे बिताने की स्थिति निर्मित हो जाती है।अपने भावनात्मक स्वस्थ्य को संरक्षित करना, जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है।स्वयं को तथा अपनी संतानों को बुद्धि की दक्षता बढ़ाने से ज्यादा,ध्यान भावनात्मक लब्धि बढ़ाने पर दिया जाना आवश्यक है,ताकि,जीवन का वास्तविक मर्म,तथा आनंद को अनुभव किया जा सके, तथा समाज में भी प्रसारित किया जा सके।

राष्ट्र तथा समाज में हमारी तीव्र बुद्धि की उपादेयता तभी है,जब हम अपने ई क्यू को स्ट्रॉन्ग कर, अपने अजीजों तथा समाज की वंचित मानवता में भी खुशियों के सहभागी बन इनका उत्थान कर सकें।यह जवाबदारी हमारी ही है कि,स्वयं को तथा अपनी संतानों का ई क्यू उन्नत करने के लिए पर्याप्त जागरूक रह कर जीवन के आनंद अमृत का पान कर जीवन के उद्देश्य को सफल करें।

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