ज्योत से ज्योत जलाते चलो……. Gurmeet Singh

4/5 - (7 votes)

Loading

ज्योत से ज्योत जलाते चलो,

प्रेम की गंगा बहाते चलो।

ज्योत से ज्योत जगाते चलो,महज फिल्मी गीत की पंक्तियां ही नहीं हैं,अपितु अपने आप में बहुत गहन अर्थ समेटे हुए हैं ये ढाई आखर प्रेम के समूचे अस्तित्व के केंद्र में विद्यमान हैं। प्रेम को मात्र वेलेंटाइन डे पर याद कर लेना अथवा अपने अपने ढ़ंग से सेलिब्रेट कर लेना ही पर्याप्त नहीं है।वास्तव में प्रेम को व्यक्त करने के लिए अवसर अथवा दिवस को खोजना,प्रदर्शित करता है कि, रूह और दिलों की स्थिति आज रेगिस्तान सी हो गई है।सरल शब्दों में कहा जाए तो, प्रेम को अभिव्यक्त करने के लिए किसी दिवस की प्रतीक्षा करना, प्रेम तो कदापि नहीं हैं,अपितु मौज मस्ती के अवसर के रूप में उपयोग करना है।प्रेम तो शाश्वत है, हर समय है,मानवता में सदैव विद्यमान है, इसे किसी दिन विशेष की आवश्यकता भी नहीं है।

पश्चिम की हर परम्परा और उत्सव को आत्मसात कर लेने के पीछे मार्केट की ताकते भी सक्रिय हैं,जिनका प्रमुख उद्दयेश वित्तीय परिचालन को बढ़ावा देना होता है।बाजार में अर्थ का मुक्त प्रवाह भी स्वस्थ्य वित्तीय व्यवस्था हेतु आवश्यक है,परंतु यह व्यय अगर सार्थक कारणों और निर्धनों की सहायता हेतु किए जाये,तो ज्यादा उपयोगी होंगे।संत वेलेंटाइन को पश्चिमी देशों में प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए पूज्यनीय माना जाता है,और इन भावनाओं को पर्याप्त सम्मान दिया जाना तथा आस्था रखना स्वागत योग्य है।इस दिन को मनाने के स्थान पर यदि यह संकल्प लिया जाये कि,हृदय को प्रेम से परिपूर्ण रखते हुए अपने मानवीय मूल्यों को और बढ़ाया जाएगा,तो इस अवसर की सार्थकता सिद्ध हो सकती है।इस संकल्प को आत्मसात करने के लिए सर्वप्रथम प्रेम को समझना भी अति आवश्यक है।

ढाई आखर प्रेम के पढ़े सो पंडित होय,यह लघु वाक्य, प्रेम के गहन अर्थ को सहेजें हुए हैं।प्रेम दिवस को मना लेना और प्रेम के को समझ लेने में जमीन आसमान का अंतर है। इस सृष्टि की उत्पत्ति में ही प्रेम मुख्य कारक है,यह मात्र भावना नहीं है,आपका आस्तित्व है।आत्मा का अगर एम आर आई हो सकता तो विशुद्ध प्रेम की तरंगों की विवेचना भी वैज्ञानिक कर सकते हैं भौतिक शरीर में प्रेम का निवास अमृत की तरह ही है जो मनोभावों को आनंदित स्थिति में स्वत:ही ला देता है।प्रेम न तो बाजार में बिकता है न ही संसाधनों, उत्सवों के मना लेने से उपलब्ध होता है। आनंद की सर्वोच्च स्थिति में निरन्तर रहना, प्रेम की उपस्थिति का परिचायक है।प्रेम का स्वार्थ नहीं होता, बेशर्त प्रेम हमेशा करुणा,दया मानवता,आत्मविश्वास तथा शांति के मनोभावों से परिपूर्ण होकर व्यक्ति को आनंदित अवस्था में रखता है।प्रेम कोई भावना नहीं है,अपितु यह एक व्यक्तित्व का सर्वोच्च गुण है,जो तमाम सकारत्मक भावनाओं को सहेजे हुए है।वर्तमान के जीवन संघर्ष,स्पर्धाओं,वासनाओं के जाल में यह अमृत सामान गुण,लुप्त प्राय: स्थिति में आ चुका है।व्यक्ति इन कारणों से अपरिचित है, व प्रेम को हासिल करने के प्रयासों में भूल भुलैया में खो गया है,अथवा उस ढकेल दिया गया है।

प्रेम उस ज्योत के समान है,जो सबके पास है,किन्तु प्रज्वलित किए जाने की आवश्कता है।इसीलिए शीर्षक में कहा गया है कि,ज्योत से ज्योत जलाते चलो,प्रेम की गंगा बहाते चलो।इस अमूल्य ज्योति से स्वयं को प्रकाशित करें,तथा अपने करीबियों में भी इस ज्योति को जलाएं,अपने आप प्रेम की गंगा का प्रवाह से मानवता के उत्थान में सकारात्मक गति आएगी।ध्यान अथवा मेडिटेशन इस प्रक्रिया में अत्यंत सहायक है।यहां स्व अवलोकन किए जाने की आवश्यकता है जिससे, अपनी इच्छाओं तथा आवश्यकता में अंतर करना तथा जीवन के लक्ष्य निर्धारित करने में सहायता मिलेगी,तथा अनावश्यक स्पर्धाओं से मुक्ति पाई जाकर भौतिक शरीर को हानिकारक भावनाओं के बंधन से छुटकारा मिल सकेगा।ध्यान भी तभी कारागार है,जब शरीर की भौतिक तथा मानसिक दशाएं भलीभांति स्वस्थ्य हों।जैसे ही आप इन हानिकारक बंधनों से मुक्त होंगे,ध्यान के लिए प्रयास नहीं करने होंगे, वह अपने आप घटित होने लगेगा।मुख्य चुनौती हमे अपने अंदर संधारित,मोह,लोभ,काम,ईर्ष्या,अहंकार,भय,अशांति और क्रोध को पहचानना तथा उससे मुक्ति पाना है। इन बंधनों से मुक्ति मिलते ही प्रेम का निर्मल झरना,आपको आनंद की स्व स्थिति में स्थापित कर देगा।

आत्मा में जैसे ही प्रेम की ज्योति प्रज्वलित होगी,इस ढाई आखर का वास्तविक अर्थ समझ में आने लगेगा,फिर किन्हीं भी व्याख्याओं की आवश्कता का अनुभव नहीं होगा।मानव का अपनी मूलभूत स्थिति में अवस्थित होने का आनंद अवर्णनीय है।प्रेम  परिभाषित किए जाने के स्थान पर, अनुभव किए जाने वाला विषय हैं।एक बार शाश्वत आनंद की स्थिति मिल जाती है तो किसी विशेष दिन को मनाने की स्थिति का स्वत: ही लोप हो जाएगा, और प्रति दिन ही उत्सव की मानिंद प्रतीत होगा। आइए बढ़ चले इस बेशर्त प्रेम को पाने की राह पर। ज्योत से ज्योत जलाते हुए,प्रेम की गंगा बहाते हुए, राह में आएं जो दीन दुखी, सबको गले से लगाते हुए।

PicsArt_08-15-08.13.22__01
PicsArt_08-15-08.13.22__01
e43e672156f19d9a14bfd08d8932a97d
e43e672156f19d9a14bfd08d8932a97d
golden-temple
golden-temple
PicsArt_08-18-11.59.55
PicsArt_08-18-11.59.55
142e893307b167c0ddacc6ec15e99cca
142e893307b167c0ddacc6ec15e99cca
a53d6276b5adbc8371bcc4fcd6bb768c
a53d6276b5adbc8371bcc4fcd6bb768c
PicsArt_07-11-06.43.54
PicsArt_07-11-06.43.54
PicsArt_08-25-07.16.58__01
PicsArt_08-25-07.16.58__01
PlayPause
previous arrowprevious arrow
next arrownext arrow
PicsArt_08-15-08.13.22__01
e43e672156f19d9a14bfd08d8932a97d
golden-temple
PicsArt_08-18-11.59.55
142e893307b167c0ddacc6ec15e99cca
a53d6276b5adbc8371bcc4fcd6bb768c
PicsArt_07-11-06.43.54
PicsArt_08-25-07.16.58__01
previous arrow
next arrow
Spread the love