एकांत कितनी देर तक ? क्या एकांत सुख है,आनंद है ! ! गुरमीत सिंह

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एकांत कितनी देर तक ? क्या एकांत सुख है,

आनंद है ! !…….गुरमीत सिंह



एकांत शब्द की व्याख्या,प्रायः:अलग अलग समझी जाती है।यह प्रश्न बहुत माकूल है कि,आखिरकार एकांत कब तक और किनसे।क्या जीवन कर्म निभाते हुए सर्वदा एकांत संभव है ? कुछ लोग कुछ समय के लिए एकांतवास में चले जाते हैं ।वास्तव में वे लोग जीवन की आपाधापी से परेशान होकर मन की शांति हेतु विश्राम लेते हैं।अपनी इच्छाओं की निरन्तर बाढ़ जो वे स्वयं उत्पन्न करते हैं,से उनका मस्तिष्क व शरीर त्रस्त होकर शांति मांगता है,तो कुछ लोग विद्यमान परिस्थितियों से दूर हो जाते हैं,जिसको एकांतवास का नाम दिया जाता है। कुछ सज्जन जीवन की चुनौतियों से घबरा कर पलायन कर जाते है,जिसको एकांत का नाम से दिया जाता है।कभी कभी नवीन चिंतन तथा भविष्य की योजनाओं को बनाने के लिए मन एकांत चाहता है।यह सब क्रियाएं वास्तव में मन की चाहना है कि, उसको विश्राम की आवश्यकता है।


चेतन मन तथा अवचेतन मन कभी भी अक्रियाशील स्थिति में बहुत अधिक देर तक नहीं रह सकते है। अवचेतन मन का एक हिस्सा तो निरन्तर ही शरीर की क्रियाएं संचालित करने में व्यस्त रहता है।जैसे ही मन की वांछित विश्रांति पूर्ण होगी,वह तुरंत कुछ न कुछ क्रियाओं के लिए सक्रिय होने का प्रयास करने लगेगा।ऐसी स्थिति में,एकांतवास से अंतर्मन में घबराहट प्रारम्भ होने लगेगी,अर्थात एकांतवास की अवधि मन के अंदर संधारित धारणाओं से ही निर्धारित होगी।आज की परिस्थितियों से अनुकूलित मनुष्य दीर्घ अवधि तक एकांत में नहीं रह सकता है।अत: एकांत को लंबे समय तक रखना मन कदापि स्वीकार करने की स्थिति में नहीं है।


साधना अथवा ध्यान के लिए अवश्य एकांत की आवश्यकता हो सकती है,परन्तु यह एकांत तभी उपयोगी है,जब मन भी मौन स्थिति में हो।अगर मन के घोड़े बेलगाम दौड़ते रहेंगे तो,कितना भी एकांत में चले जाएं वो किसी काम का नहीं होगा।यह नियम मात्र साधना के लिए ही नहीं अपितु नवीन चिंतन तथा शारीरिक विश्रांति के लिए वांछित एकांत पर भी लागू होता है। “ मन अगर शांत नहीं है,तो कहीं भी एकांत नहीं है “।ध्वनि रहित वातावरण एकांत जरूर लग सकता है,लेकिन विचारों का अनंत प्रवाह कभी भी एकांत की वास्तविक परिभाषा को क्रियान्वित नहीं होने देगा।पुरानी कहावत इस परिप्रेक्ष्य में सटीक बैठती है कि, “ मन चंगा तो कठौती में गंगा “।तो एकांत सुख है यां आनंद है यह मन की परिस्थितियों पर पूर्णतः: निर्भर है।अगर मन शांत नहीं है,तो एकांत किसी काम का नहीं और मन शांत है तो सर्व स्थल एकांत है।आसपास विद्यमान ध्वनियां भी अगर फोकस को डिस्टर्ब नहीं करती हैं,तो यह मन की सर्वाधिक उच्चतम अवस्था है।


तो आनंद तथा सुख के लिए सर्वदा एकांत की ही आवश्यकता होगी,यह हमारे मन मस्तिष्क तथा शारीरिक अवस्थाओं पर ही निर्भर करता है।एकांत हमेशा आनंद ही देगा,यह भी सर्वमान्य तथ्य नहीं हो सकता है। जो मनुष्य दुनियादारी से जुड़े है,उनके मन,मस्तिष्क भी कभी दीर्घावधि तक एकांत में सहज नहीं रह सकेंगे। अपनों तथा अपने समाज के साथ रहने के जो स्थाई भाव अवचेतन में गहरे रोपित हैं,वो एकांतवास में मनुष्य को सहज और आनंदित अवस्था में रहने ही नहीं देंगे।अत:सारांश यही निकलता है कि, मन अर्थात विचारों का एकांत ही आनंद,सुख तथा साधना/ध्यान के लिए सर्वथा उपयोगी है,भौतिक एकांत से निहित उद्देश्य का समाधान अत्यंत कठिन है।

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समाज में रहते हुए,पारिवारिक तथा सामाजिक दायित्वों की पूर्ति के साथ साथ, मन का एकांत कैसे सहज रूप से सुलभ हो,के लिए आई. ओ. आई. सी., के द्वारा स्ववलोकन विषय पर महत्वपूर्ण कार्यशालाओं का नियमित आयोजन किया जाता है।इस जटिल विषय को इतने सरल तरीके से समझाया तथा क्रियान्वित कराया जाता है कि,सहभागी स्वयं ही अपने अवचेतन में अनजाने में संधारित अवांछित धारणाओं तथा विचारों की पहचान कर उनसे मुक्ति के प्रयास गंभीरतापूर्वक करते हैं।वास्तव में मन का एकांत भी तभी संभव है,जब हम अवांछित सहेजी हुई धारणाओं से मुक्ति पा लें।


आइए इस अभियान के उद्देश्य तथा लक्ष्य को सार्थक करते हुए मन के वास्तविक एकांत को पाने की दिशा में प्रभावकारी कदम उठाने को संकल्प लें।

ioic.in


स्वावलोकन

व्यक्तित्व के आंतरिक परिवर्तन की सरल विधि,जिसमे सहभागी स्वयं ही अपने व्यक्तित्व का मूल्यांकन कर अवांछित नकारत्मक भावनाओं को चिन्हित करता है,तथा उनसे मुक्ति हेतु मौन संवाद तथा सेल्फ एफिर्मेशन स्वयं को देता है। Initiation for Internal changes संस्था (IOIC) के द्वारा यह महती कार्य किया जा रहा है।संपर्क के लिए निम्नांकित वेबसाइट पर विस्तृत विवरण प्राप्त कर लाभ उठाया जाना प्रार्थित है।


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10 thoughts on “एकांत कितनी देर तक ? क्या एकांत सुख है,आनंद है ! ! गुरमीत सिंह

  1. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतीकरण
    बहुत बहुत बधाई एवं मंगल शुभ कामनाएँ

  2. बहुत सुंदर और सार्थक विचारों के बेहतरीन प्रस्तुतिकरण हेतु आपको बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ ।

  3. साधुवाद।
    एकांत और आनंद के लिए अपने इसी जन्म में होशोहवास में किए गए कर्म भी जिम्मेदार होते होंगे। जीवन भर अधर्म और अनैतिक तरीकों से धन या यश कमा कर क्या मात्र एकांत,ध्यान और साधना से सच्चा आनंद पाया जा सकता है !!

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