क्वांटम भौतिकी तथा मेटा भौतिकी के निरंतर विकास से यह तथ्य प्रतिपादित होने लगा है कि,संपूर्ण आस्तित्व ऊर्जा रूपांतरण के विभिन्न आयामों से ही निर्मित है,तथा कुल ऊर्जा की मात्रा के अंदर ही पदार्थ अलग अलग आस्तित्व रूपों में उपस्थित रहता है।जो तथ्य भारतीय विचारकों,संतों तथा गुरुओं ने कई शताब्दियों पूर्व,अभिव्यक्त किए थे,उनकी पुष्टि का क्रम वैज्ञानिकों के द्वारा निरंतर जारी है,जिससे हमारे अपने विचारकों के प्रति छाए संदेह के बादल भी क्रमश:छटने लगे है।
कॉस्मिक इंटेलिजेंस को,प्रकट होने तथा आस्तित्व की इच्छा को पूर्ण करने की दिशा में,मानव शरीर के माध्यम की आवश्यकता है, व यही जगत के स्वामी की इच्छानुसार, आस्तित्व के निरंतर उन्नयन तथा विकास का आधार है।मनुष्य भले ही अपनी चतुरता तथा बुद्धि पर इतराता है,परंतु यह शक्ति अनंत दिव्य ऊर्जा के द्वारा ही मिलती है।समूचा विश्व तथा आस्तित्व,एक निश्चित विकास के क्रम में ही विकसित हो रहा है,मानव जगत तो मात्र माध्यम भर है।वास्तव में जीवात्मा को निरपेक्ष आनंद के अनुभव तथा सृष्टि कर्ता के इच्छा की पूर्ति हेतु,मानव शरीर की प्राप्ति होती है, परन्तु दिव्य कॉस्मिक ज्ञान को हम अपनी उपलब्धि मानते हुए,अहम में चूर होकर,मानवता के विनाश में संलग्न हो जाते है।
इस सृष्टि के विकास तथा उन्नयन की दिशा पूर्व निर्धारित है,अर्थात हमारी मंजिल पहले से ही तय है,हम उसी दिशा में अनायास ही चलते हैं,जो सृष्टिकर्ता ने निर्धारित कर रखा है।कॉस्मिक साइंस अर्थात क्वांटम फिजिक्स के शोध भी इन्हीं निष्कर्षों पर पहुंच रहे है।प्रत्येक प्राणी को जगत स्वामी ने कार्य सौंप रखा है,जो उसके मूलभूत स्वभाव में संरक्षित होता है,परंतु चतुर मनुष्य,अपनी मानसिक चालाकियों तथा भ्रम के चलते पटरी से उतर कर,अपने मूल स्वभाव से इतर कार्य करने,लगता है,जो उसके मानसिक दुखों का कारण बनते हैं।हमारा भविष्य पूर्व निर्धारित है,और उसको कोई भी नहीं बदल सकता। हमे अपने कर्म स्वयं के स्वभाव अनुसार ही तय करने चाहिए,यही हमारा प्रारब्ध है जो कि पूर्व निर्धारित है।
आप अपने आस पास नजर डालेंगे तो पाएंगे,कई व्यक्ति आश्चर्यजनक, तथा अविश्वसनीय रूप से जीवन में उच्च उपलब्धियां हासिल करे होते हैं।कक्षा में बैक बेंचर सफलता के सोपान पर अग्रसर दिखते हैं, वहीं टॉप रैंकर,निराशा तथा हताश जीवन जीते हुए दिखते हैं।यह मनुष्य का प्रारब्ध ही है,जो आस्तित्व के स्वामी के द्वारा पूर्व निर्धारित होता है।व्यक्ति को निर्धारित मंजिल की और यात्रा हेतु आश्चर्यजनक रूप से,राहों के चयन की बुद्धि,अवसर तथा समाधान मिलने लगते हैं। अत: यात्रा का प्रारब्ध स्वीकार कर,आनंद से यात्रा पूर्ण करने का मानस बना लेना चाहिए। हमारे विचारक,जीवन के प्रत्येक सोपान को हरि इच्छा के रूप में आत्म स्वीकृति देने का संदेश देते रहे है,जो वास्तव में,प्रारब्ध को स्वीकार कर,मानसिक मजबूती बनाए रखने के अंतर्निहित संदेशों को प्रकट करते हैं।
अपने स्वभाव को पहचानें,तदानुसार कर्म करें तथा प्रारब्ध को स्वीकार कर,पूर्व निर्धारित मंजिल की और मानसिक आनंद,उमंग और उत्साह के साथ जारी रखें। किशोर कुमार के लोकप्रिय गीत का स्मरण करें “ मैं तो चला,जिधर चले रास्ता, मुझे क्या खबर है,कहां मेरी मंजिल”

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