
देव ऊर्जाओं के विश्राम की अवधि में,पितरों के स्मरण के पश्चात,शक्ति पर्व की उपासना के साथ प्रारंभ चंद्र माह,अब देवी महालक्ष्मी की अमूर्त,अनंत दिव्य ऊर्जा के स्मरण और आशीर्वाद के साथ दीवाली उत्सव के रूप में संपन्न होता है।यह सम्पूर्ण चंद्र माह,देवी शक्ति की आराधना से परिपूर्ण होकर,समूचे जगत को, अपनी दिव्य ऊर्जाओं से गतिमान तथा उत्साह की स्थिति में रखता है,जिससे असुर शक्तियों के दुष्प्रभाव अनियंत्रित नहीं हो पाता।
समुद्र मंथन,जो कि जगत की उत्पत्ति का सोपान भी है,के अंतराल में ही, अमावस की रात्रि को देवी महालक्ष्मी की दिव्य ऊर्जा से यह जगत रोशन हुआ।महालक्ष्मी ने प्रत्येक युग में,अपने विभिन्न स्वरूपों में,अवतरण दिवस को, असुर शक्तियों के पराजय से अभिव्यक्त किया है।अमावस की काल रात्रि पर, दीपक दान तथा दीयों की रोशनी,वास्तव में प्रतीक है,जब संपूर्ण जगत से नकारात्मक,दुष्ट तथा क्रूर ऊर्जाओं की कालिमा का संहार कर,जगत को देवीय गुणों से प्रकाशित किया जाता है।
वास्तु पुरुष की संकल्पना पूर्ण रूप से सत्य है कि,जगत में सुर तथा असुर सदैव विद्यमान रहेगें,और इसी से सृष्टि का हर कर्म संचालित होता है। भूतकाल में भी और आज भी असुर शक्तियां हमारे मध्य विविध रूपों में उपस्थित हैं,और दीपोत्सव का यह पावन पर्व के माध्यम से महा लक्ष्मी स्मरण दिलाती है कि,हम अपने अंतर को,देवीय गुणों से प्रकाशित करें तो,यह विश्व सदैव, धन धान्य से परिपूर्ण बना रहेगा।इसी संदर्भ में लक्ष्मी की उपासना को,धन के आगमन से जोड़ कर देखने की आवश्यकता है।
इस पावन पर्व पर,दिलों के दीप को भी रोशन करते हुए,अंतर को देवीय गुणों से प्रकाशित कर, विश्व समृद्धि की कामना के साथ,महा लक्ष्मी की संपूर्ण आस्था के साथ,उपासना करें।रोशनी के इस पर्व के उद्देश्य को सार्थक करने के संकल्प के साथ, समस्त विश्व को शत शत अनंत शुभकामनाएं।

Very well said.
Thanks Ullass for your inspiration.
Ya devi sarv bhutesu Lakshmi rupen sansthita namastasyai namastasyai namo.
Well Said dear RRT