
पर यह आनंद क्या है ??
गुरमीत सिंह
आई. ओ. आई. सी. संस्था जो मानव जीवन में सुख शांति,आनंद,प्रेम तथा सकारत्मक धारणाओं की स्थापना हेतु परिणाम मूलक कार्यशालाएं चला रही है,के प्रमुख श्री मनोहर दुबे जी के द्वारा इस विषय पर सुझाव आमंत्रित किए गए।उनके इस प्रेरक आव्हान से प्रेरणा लेकर इस अत्यंत गूढ़ विषय पर लेखन का संक्षिप्त प्रयास किया है।
जीवन की इस आपाधापी का लक्ष्य क्या है?
लोग दौलत,शोहरत,पॉवर,अंहकार संतुष्टि की दौड़ में व्यस्त हैं।शायद इन सबके पीछे सुरक्षा और आनंद प्राप्ति की भावनाएं मन मस्तिष्क में समाई हुई हैं।सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा तो बहुत हद तक मिल जाती है,लेकिन जहां तक आनंद प्राप्ति का जो अव्यक्त लक्ष्य है,वह दूर दूर तक लापता है,साथ ही आनंद को अनुभव करने के लिए समुचित समग्र स्वास्थ्य भी उपलब्ध नहीं होता है।जीवन की अंधी दौड़ से,भौतिक संसाधन और सफलता तो किंचित मिल जाती हैं,लेकिन सुख,शांति,आनंद और स्वास्थ्य गवाने की कीमत चुकानी होती है।लोगों को लगता है कि,संसाधनों और धन से वे,सब कुछ खरीद सकते है।वर्तमान के कोरोना काल ने यह सबक भी दिया है कि,अकूत दौलत और संसाधन भी जीवन की रक्षा नहीं कर पा रहे हैं।अब इस सत्य को स्वीकार करने का विवेक भी जागृति में सहायक नहीं हो पा रहा है।अगर धन दौलत से आनंद का क्रय कर भी लिया जाए तो इस अमृत को रूहानी गहराइयों तक अनुभव करने के लिए शारीरिक तथा मानसिक धरातल पर जो गुणवत्ता आवश्यक है,क्या वो भी उपलब्ध है?
वस्तुत: आनंद की परिभाषा को, प्राचीन काल से अब तक कई विद्वानों,विचारकों,संतों,ग्रंथों तथा शोधकर्ताओं ने अपने अपने अनुभव के आधार पर व्यक्त किया है।आनंद की सार्वभौमिक,सर्वमान्य एकल परिभाषा की अभी भी प्रतीक्षा है। कई लोग जीवन में मौज मजे को ही आनंद मान लेते हैं।वहीं धन संपदा,शक्ति,शोहरत भी आनंदित होने का भ्रम फैलाती हैं।अध्यात्मिक यात्राएं,सत्संग,धार्मिक क्रिया कलापों को भी आनंद और प्राप्ति का साधन माना गया है।कुल मिला कर लोग अपनी अपनी धारणाओं के अनुसार व्याख्या करते हुए इस अमृत को प्राप्त करने के यत्न में लगे हैं,तथा इस अमूल्य अमृत के स्थान पर डुप्लीकेट तथा भ्रामक नशे तुल्य पदार्थ ही हासिल कर पाते हैं,जो नशा उतरने के पश्चात हैंगोवर की स्थिति में ला देता है।खालिस अमृत का अनुभव तो कुछ ही लोग प्राप्त कर पाते हैं।
आनंद बसता कहां पर है,यह बहुत ही जिज्ञासु प्रश्न है।वस्तुत:आनंद और प्रेम परस्पर एक दूजे के पूरक हैं।जिस हृदय में प्रेम नहीं, वहां आनंद की उपस्थिति होगी,यह सबसे बड़ा भ्रम है।तो आनंद की यात्रा पर निकलने से पहले,सबसे महत्वपूर्ण और बड़ा काम अपने हृदय में निस्वार्थ प्रेम की उपस्थिति को सुनिश्चित करना है।प्रेम ही एक ऐसी भावना है जो,आनंद का गहरे मानसिक तथा रूहानी तल पर अनुभव कराती है।गणित की भाषा में कहें तो आनंद के अनुभव की मात्रा हृदय में धारित प्रेम के समानुपातिक होती है,जो एक स्थिरांक पर निर्भर करती है।प्रत्येक व्यक्ति में यह स्थिरांक भिन्न भिन्न हो सकता है,जो कि अवचेतन में संधारित गुणवत्ता के अनुसार निर्धारित होता है।अगर हृदय में प्रेम और सकारत्मक भाव,करुणा,दया इत्यादि नहीं है, भौतिक शरीर स्वस्थ्य नहीं है तो आनंद का अनुभव होना ही नहीं है।आत्मा और हृदय प्रेम से भरपूर हो,शरीर स्वस्थ्य हो तो,आनंद को खोजने की आवश्यकता ही नहीं है। किसी भी धन,संपदा,संसाधनों के पीछे भागने की जरूरत आनंद के अनुभव हेतु तो कदापि नहीं है।
आनंद क्या है ? जब मानसिक स्थिति तनाव मुक्त होकर शांति आत्मविश्वास और उल्लास उमंग की भावनाओं से युक्त हो,अभय तथा हल्के शरीर की अनुभूति हो,समय के बीतने को एहसास समाप्त हो जाए,तो ऐसी अवस्था ही आनंद का परिचय है,इस स्थिति में आने पर मन इसको छोड़ने के लिए तैयार नहीं होता है। यही वो अमूल्य अमृत है,जिसके आकांक्षी होने की अभिलाषा रखें। वर्तमान जीवन की चुनौतियों,सर्वाइवल संकट में यह सब किताबी उपदेश जैसा ही लगता है,परन्तु जीवन के ध्येय की सफलता इसी मे निहित है। टिकाऊ आनंद की स्थिति को पाने की उत्कंठा को प्रबल रखना ही होगा।यह स्थिति ईश्वर को पाने के समान ही है।
इस अनंत और विराट आस्तित्व की ऊर्जा ही हमारे आस्तित्व का अंश है,और यह अव्यक्त विराट मूलत:प्रेम तथा अवर्णनीय आनंद ऊर्जा तरंगों से युक्त है।जो हमारे अंदर है,वही बाहर भी है,अत:ईश्वरीय गुणों को आत्मसात करना करना ही हमारे अपने अस्तित्व का ध्येय होना चाहिए।बेशर्त प्रेम,करुणा,दया,शांति के साथ आनंदित अवस्था को धारण कर लेने पर, हम स्वयं विराट की समीपता को अनुभव करेंगे।इसी तथ्य को गुरु ग्रंथ साहिब में उद्धृत करते हुए वर्णन किया है “आनंद भया मेरी माए,सतगुरु में पाया “। अर्थात मुझे आनंद की अवर्चनीय प्राप्ति से सतगुरु का आशीर्वाद मिल गया है।
आनंद को सहेजने के इस गूढ़ रहस्य को सरल तथा सुलभ तरीके से आई. ओ. आइ. सी. के द्वारा अपनी विभिन्न कार्यशालाओं में,सहभागियों या कहें सहयात्रियों को समझाया जाता है। स्ववलोकान के सत्रों में,सहभागी स्वयं ही अपने व्यक्तित्व की कमियों का आकलन कर,हृदय में प्रेम,दया,सहयोग की भावनाओं के स्थाई निवास हेतु संकल्प लेते हैं, जो कि आनंद को अनुभव करने के लिए परम आवश्यक है। स्व अवलोकन की कार्यशालाएं एक तरह से देखा जाए तो सहयात्रियों को अपरोक्ष रूप से निशुल्क आनंद की यात्रा की और ले जा रही हैं।आई. ओ.आई. सी.की वेबसाइट पर पंजीयन कर इन कार्यशालाओं में सहयात्री बन कर इस अमूल्य अमृत को अपने जीवन का अंग बनाया जा सकता है।
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बहुत खूबसूरती से “आंनद”को समझाया गया है,आपके इस आर्टिकल में….वाह वाकई आंनद के साथ परमानंद की अनुभूति …….
आनन्द क्या है, विषय पर बहुत ही सुन्दर एवं उपयोगी लेखन किया है! गुरमीत भाई इस तरह के सुन्दर लेखन के लिए इतना समय कैसे निकाल पाते हो ! आपके उक्त लेख को पढ़कर बहुत अच्छा लगा , आगे आपके इस तरह के ओर भी ज्ञान उपयोगी लेखन प्राप्त होते रहेगे ऐसी आशा करते है उपरोक्त बहुत ही सुन्दर लेखन के लिए बधाइयाँ!
Thanks Haneef bhai for reading an article in depth and providing your valuable comments with inspiration.
Very nice lakh dear
Thanks Dear Narendra for your Motivational words
जीवन में अंतरात्मा के मार्गदर्शन में चलना ही आनंद है। अंतरात्मा हमे प्रतिक्षण आनंद प्राप्ति हेतु मार्गदर्शित करती रहती है परंतु हम मायाजाल के प्रभाव में उसको अनसुना कर देते हैं।
हमारे मन में हमेशा दो तरह के विचार आते हैं। प्रथम विचार अंतरात्मा का निर्देश होता है और दूसरा विचार हमारे अनुभवों एवं संस्कार द्वारा उत्पन्न होता है।
प्रथम विचार को परमात्मा का आदेश मानकर आत्मसात करना ही आंनद है। आपका यह कहना सही है कि प्रेम आनंद प्राप्ति हेतु परमावश्यक तत्व है। आत्मा जो कि परमात्मा का सूक्ष्म रूप है प्रेमस्वरूप ही है।
सभी पाठकों को परमानंद प्राप्ति हेतु शुभकामनाएं।
बिल्कुल सही कथन है रंजन भाई।धन्यवाद बेहतरीन विचार सांझा करने के लिए।
बहुत ही सुंदर और पठनीय चित्रण
धन्यवाद राकेश जी।
बहुत ही उत्तम विचार
धन्यवाद विवेक भाई।