शिव अस्तित्व के रचियता भी हैं,और अस्तित्व भी हैं।वो ऊर्जा भी हैं और पदार्थ भी हैं।सृष्टि के कण कण में शिव स्वयं विद्यमान हैं।मानव जीवन का अस्तित्व, रचियता का उपहार है,जो परम चेतना के अवर्चनीय आनन्द को अनुभव करने के लिए दिया गया है,परंतु मानव मन के अहम ने स्वयं को ही स्वयंभू मान कर,दिव्य चेतना का प्रवेश मार्ग बंद कर लिया है।जैसे जैसे अहम बढ़ता है,अहंकारी मन असुर वृतियों का आश्रय स्थल बनता जाता है और अस्तित्व की दिव्य चेतना से दूर होता जाता है।
