आनंद के रंग,परमात्मा के संग गुरमीत सिंह

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  होली का यह उत्सव स्मरण दिलाता है कि,होली के रंगों के साथ परमात्मा के रंग में रंग जाने की सार्थकता भी तभी है,जब मन के विकारों का भी अग्नि दहन कर दिया जाए।वसंत ऋतु के इस खंड में रंगों का मादक असर रोम रोम आनंदित कर,प्रभु की शरण का अनुभव भी तभी कराएगा,जब मन अहंकार,नफरत ईर्ष्या तथा स्वार्थ से मुक्त होकर निर्मल झरने की तरह इस अस्तित्व को सुगंधित करेगा।ईश्वर का सानिध्य तथा प्रेम हासिल करने के लिए इस अनुपम पर्व के संदेशों को सामूहिक रूप से आत्मसात कर लेने के संकल्प तथा अनुशासन अति आवश्यक है।

   प्रकृति तो हमें हर पल पुकार रही है कि,मन से निर्मल होकर उसके रंग में रंग जाओ और होली को निरंतर प्रत्येक पल निसर्ग के सानिध्य तथा आलिंगन में मनाओ।आइए गुजरते संवत्सर में जाने अंजाने एकत्रित किए गए विकारों का दहन कर,स्वयं को परमात्मा के प्रेम रंग में विलीन कर लें तथा उमंग,उल्लास,उत्साह तथा ऊर्जाओं को जीवन में आत्मसात करते हुए,नवीन संवत्सर का गर्मजोशी से स्वागत करें।

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