मानसिक प्रदूषण के निराकरण से प्रकृति प्रदूषण का समाधान……गुरमीत सिंह

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जीवन के सुचारू संचालन के लिए,प्रकृति ने पर्यावरण संतुलन की अप्रतिम व्यवस्था का रूपांकन किया हुआ है।निसर्ग का हर घटक, अपने संयोजन की एक निश्चित गुणवत्ता तथा मात्रा को संरक्षित रखता है,जो जीवन के परिचालन के लिए अनिवार्य है।पंचतत्व का स्व संरक्षण ही पर्यावरण को संतुलित रखता है।विगत दशकों से,जीवन को आरामदायक बनाने के लिए,वैज्ञानिकों ने कई अभूतपूर्व आविष्कार किए हैं।इस अमृत को प्राप्त करने में उत्पन्न हुआ विष, जीवन की निरंतरता को कितना प्रभावित करेगा,यह जान के भी हम अंजान बने हुए हैं।

विकास के विभिन्न सोपानों में आदि काल से ही अमृत मंथन विभिन्न रूपों में, क्रियान्वित होता रहा है।सुर और असुर ऊर्जाएं दोनों इस अमृत के लिए सदैव लालायित रही हैं,परंतु इस प्रक्रिया से उपजा विषपान कोई करने को तैयार नहीं होता है।प्रत्येक मंथन में सृष्टि को चलायमान रखने के लिए शिव ने ही यह विष पिया है।मानव विकास भी अमृत मंथन के समान है,परंतु अब सभी अपने देवत्व के गुण त्याज्य कर,असुर गुणवत्ता को ग्रहण करने के लिए आतुर प्रतीत हो रहे हैं,ऐसे में विकास मंथन से उपजे विष का निपटान कौन करे। आज हम सब भस्मासुर होते जा रहे हैं,और अहम के नशे में चूर होकर, अपने ही सिर पर हाथ रखने को उद्यत हो रहे हैं।

तात्कालिक लाभ हेतु प्रकृति के तत्वों की गुणवत्ता तथा अनुपात से छेड़छाड़ कर,वातावरण को प्रदूषित करना,वास्तव में मानसिक प्रदूषण बढ़ते जाने का लक्षण हैं।कॉस्मिक विस्डम से प्राप्त ज्ञान को अपनी बपौती समझ कर,असीम अंहकार के सिंहासन पर आरूढ़ होने की चेष्टाएं कर रहे हैं।हम कितना भी जन जागृति अभियान चलाए,प्रदूषण को नियंत्रण के उपायों पर चर्चा करते रहें,पर जब तक मानसिक प्रदूषण समाप्त नहीं होगा,यह जारी प्रयास,कुछ विशेष परिणाम नहीं दे पाएंगे।वास्तव में आवश्यकता है कि,प्रदूषण को उत्पन्न करने वाली गतिविधियों तथा आविष्कारों के क्रियान्वयनों को न्यूनतम स्तर पर लाने के प्रयास करें।जीवन के सुचारू संचालन में अमृत की भी नितांत जरूरत है,परंतु इस मंथन में वही विधियां अंगीकृत करें,जिनके साइड इफेक्ट न्यूनतम हों, और जो भी थोड़ा बहुत विष उपजे,उसको संपूर्ण मानवता के हित में समाप्त करने हेतु,निरपेक्ष और बेशर्त कर्तव्यों का निष्पादन करें।

वर्तमान में मानव जगत बढ़ती जा रही भस्मासुर प्रवृति को समाप्त करने के लिए,कड़े कानून बनाने तथा उनके क्रियान्वयन के साथ ही,यह भी अपेक्षित है कि,मानसिक गंदगी को शुद्ध करने के भी माइंड ट्रीटमेंट प्लांट बनाए जाएं। निर्मल मन,विवेक पूर्ण होकर ज्ञान का सदुपयोग कर सके, इसलिए प्रकृति के प्रदूषण नियंत्रण के लिए वैज्ञानिक योजनाओं के साथ मन का भी परिमार्जन करने की योजनाओं को रूपांकित और ठोस क्रियान्वयन की आवश्यकता है।

 योजनाकारों को यह तथ्य भी समझना होगा कि मानव की लालची प्रवृति, स्वार्थ और उदासीनता के चलते,मात्र प्रदूषण निवारण की संरचनाएं बना लेने तथा कठोर कानून बना लेने से उद्देश्य की प्राप्ति नहीं हो सकेगी।राष्ट्रीय प्रदूषण निवारण दिवस पर यह आव्हान भी समीचीन है कि,हम खुद के मन में पोषित प्रदूषण का भी निपटारा करने के संकल्पित होकर कार्य करें। नागरिक जब स्वयं निर्मल होने लगेंगे,तो प्रकृति का स्नेह और दिव्य ऊर्जा का प्रवाह जीवन के आनंद को ओर बढ़ाएगा।देश के स्वच्छ शहरों में,इंदौर नगर का लगातार पांचवें वर्ष भी सर्वश्रेष्ठ रहना इस तथ्य का परिचायक है कि,समाज जब संकल्पित होता है,तो जनहित के कार्यक्रमों को सफलता जरूर मिलती है।

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