अंतर के परिमार्जन का उत्सव…नवरात्रि. गुरमीत सिंह

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इस धरा पर मानवीय रूप में जन्म लेने के उपरांत, समय के साथ बाह्य परिस्थिति से प्रभावित होकर निर्मल अवचेतना प्रदूषित होने लगती है। जन्म के समय अबोध बालक जैसे जैसे आयु के अगले पायदानों का सफर करने लगते हैं,दुनियादारी से उत्पन्न मोह,लोभ,वासनाएं व्यक्ति को अनंत बेलगाम ख्वाहिशों के मार्ग पर अग्रसर कर देती है।मन की निर्मलता तथा विशुद्ध चेतना धीरे धीरे दूषित होने लगती है।इस चेतना के प्रदूषण को शुद्ध करने का कोई सीधा उपाय नहीं है,क्योंकि मन की चालाकी अपने इस प्रदूषण को स्वीकार करने के लिए ही तैयार नहीं होती।मानव मन की इस विषमता से प्राचीन ऋषि मुनि, विचारक तथा वेदों के रचयिता भली भांति अवगत थे।मन की नियमित शुद्धि का केवल एक ही उपाय था कि,प्रकृति तथा अस्तित्व की चेतना से, भौतिक शरीर की चेतना में आत्मसात हो जाए।आध्यात्मिक परिमार्जन एक दुरूह प्रक्रिया है, लेकिन मन को जब अपरोक्ष रूप से दिव्य ऊर्जा के सानिध्य मिल जाता है तो,जीवन में रूपांतरण घटित हो जाता है।

शिव के साथ शक्ति के संयोजन से ही जीवन घटित हो जाता है।वास्तव में देखा जाए तो, शक्ति ही जीवन की ऊर्जा को गति प्रदान करती है।पृथ्वी तथा प्रकृति ही शक्ति का  भौतिक स्वरूप है, व जीवन के पंचतत्वों का निर्माण करती है। प्रकृति की यह जीवन दायिनी दिव्य ऊर्जा जो कि विश्व की संचालक है,को मानव अपनी बुद्धि के वैज्ञानिक तर्क तथा अहम से चुनौती देने की असुर भूमिका का दर्शन यदा कदा कराता रहता है।इन्हीं स्थितियों को दृष्टिगत रख,प्राचीन भारत के संतों तथा विचारकों ने, इन दिव्य ऊर्जाओं को शक्ति के रूप में अलंकृत करते हुए मां भगवती के रूप में सुशोभित किया,ताकि मानव मन इस जीवन संचालक शक्ति के प्रति समर्पित हो जाए। प्रकृति की दिव्य शक्ति को नौ स्वरूपों में अनुभव करते हुए, वर्ष के चार खंडों में ऋतुओं के गुण धर्म के अनुसार नवरात्रि के रूप में उपासना के द्वारा मानसिक निर्मलता को प्राप्त करने के लिए मानव को प्रेरित करने का यह प्रकल्प अप्रितम है।

शारदीय नवरात्रि के इस अनुपम अवसर पर,दिव्य शक्ति मां दुर्गा के नौ रूपों की सच्चे मन से उपासना,आराधना तथा उपवास से असुर ऊर्जाएं स्वयं ही भौतिक शरीर से बाहर निकलने को विवश हो जाती हैं,तथा मन सहज,सरल तथा निर्मल होने लगता है।अवचेतन जितना ही निर्मल होता जाता है, मां शक्ति की दिव्य ऊर्जाओं के प्रवेश का मार्ग उतना ही स्पष्ट होता जाता है।वास्तव में, नवदुर्गा साधना अवचेतन की गहरी परतों को निर्मल करने तथा प्रसुप्त शक्तियों को ऊर्जावान एवं जाग्रत बनाने की प्रक्रिया है। साधना का उद्देश्य अंतहीन कामनाओं की पूर्ति न होकर,अंतर की निर्मलता की प्राप्ति है। श्रेष्ठ साधक वही हैं,जो लोकहित में अपनी साधना का समर्पण करते हैं।

हमारी समस्त इन्द्रियों में निवास करने वाली साक्षात शक्ति मां दुर्गा ही हैं। इन्हीं की साधना से ये 9 इन्द्रियां संयमित होती हैं एवं मन, शरीर और आत्मा एक ही लय में एकाकार हो जाते हैं, व जीवन के वास्तविक लक्ष्य की और मनुष्य अग्रसर होता है। नवरात्रि साधना मन को, आध्यात्मिकता की ओर ले जाने वाली वह प्रक्रिया है, जिससे हमारी चेतना पर छाई दुनियादारी की धुंध छंट जाती है एवं आंतरिक अवसाद नष्ट हो जाते हैं। नवरात्रि साधना व्यक्तित्व का परिमार्जन करने का एक अवसर है,जिससे चेतना की प्रखरता प्रगाढ़ होती है तथा पशु संस्कार देवत्व में बदलने लगते हैं। यह साधना मनुष्य को दैवीय सानिध्य प्रदान करती है।

नवरात्रि उपासना, व्रत,तथा अनुशासित जीवन चर्या तभी उपयोगी है,जब मां दुर्गा की असीम शांत और प्रेम भरी ऊर्जा को हम अपने जीवन में सदैव के लिए आत्मसात कर लें तथा प्रभु के दिए गए जीवन के वास्तविक उद्देश्य को प्राप्त कर सकें।दैनिक जीवन में नियमित रूप से स्त्रियों का सम्मान बनाया रखना ही मां दुर्गा तथा उनके नौ स्वरूपों की सच्ची आराधना है।प्रकृति जो कि देवी शक्ति के रूप में इस अस्तित्व में विद्यमान है,तथा मां दुर्गा के रूप में अनन्य आस्था का प्रतीक है,की गरिमा तथा सम्मान की रक्षा का संकल्प ही नवरात्रि पर्व के अंतर्निहित संदेश की सार्थकता को सिद्ध कर सकता है।इस पावन पर्व पर समस्त भक्तों, अनुयाइयों तथा पाठकों को अनंत शुभकामनाएं।

अंतर परिवर्तन तथा संवर्धन के लिए, आई ओ आई सी ( Initiation of inner change) के द्वारा कई workshop आयोजित किए जाते हैं।अधिक जानकारी प्राप्त करने तथा संस्था से जुड़ने के लिए निम्नांकित लिंक पर जुड़ सकते हैं।

http://ioic.in

गुरमीत सिंह

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2 thoughts on “अंतर के परिमार्जन का उत्सव…नवरात्रि. गुरमीत सिंह

  1. “मन की नियमित शुद्धि का केवल एक ही उपाय है कि,प्रकृति तथा अस्तित्व की चेतना से, भौतिक शरीर की चेतना में आत्मसात हो जाए।”
    सलूजा जी को इस लेख के लिये बधाई ।

  2. मानव जीवन में त्यौहारों के महत्व व अध्यात्म के साथ आधुनिक युग में जीवन जीने के सामंजस्य पर आधारित लेख जन कल्याणकारी है ।आपको सादर नमन

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